Thebikanertimes:-हमारे देश व प्रदेश के राजनेता इतने चतुर हैं कि जब किसान की फसल पर मौसम की मार पड़ती है तो एक दो बार विधानसभा व लोकसभा में चर्चा कर भोले भाले किसान को राजी कर देते हैं। फसल में हुए नुकसान की भरपाई के प्रयास सच्चे मन से कोई नहीं करता। पार्टियों में बंटा होने की वजह से समय निकलते ही किसान धीरे-धीरे उस बात को भूल जाता है। इसी बात का फायदा उठाना हमारे राजनेता अच्छी तरह से जान चुके हैं। जब कोई भी वाहन मालिक अपने वाहन का बीमा करवाता है तो एक्सीडेंट होने पर वाहन में होने वाले नुकसान की भरपाई कंपनी द्वारा क्लेम के रूप में की जाती है। कई बार तो वाहन चालक की लापरवाही के बाद भी कंपनी क्लेम स्वीकृत कर देती है। किसान जब अपनी फसल का बीमा करवाता है और प्रकृति की मार पड़ने पर फसल का नुकसान हो जाता है तब उसे क्लेम से क्यों वंचित रखा जाता है ? क्यों राजनेता व प्रशासन बीमा कंपनी की मदद करते हैं जबकि नुकसान किसान उठा रहा होता है। ऐसा भी सुनने में आया है कि बीमा कंपनी, किसानों को दिए जाने वाले क्लेम का दसवां हिस्सा राजनेताओं व प्रशासन को दे देती है जिससे फसल में हुए नुकसान को कम दिखा दिया जाता है और किसानों को क्लेम से वंचित कर दिया जाता है बेचारा किसान रो धोकर रह जाता है और गुस्से में एक बार उस पार्टी को वोट नहीं करता जो सत्ता में है। दूसरी पार्टी भी उसी राह पर चलती है। किसान इधर जाए तो कुआं उधर जाए तो खाड़ अब सभी किसानों और मजदूरों को आपसी मनमुटाव छोड़कर कांग्रेस और भाजपा दोनों को सबक सिखाने के लिए किसी तीसरी पार्टी के पक्ष में वोट करने होंगे। जीतने हारने की आपको चिंता नहीं करनी है, सिर्फ एकजुटता से तीसरे के पक्ष में मतदान करना है फिर किसानों की समस्याओं को कांग्रेस भाजपा वाले भी भली-भांति समझ जाएंगे और किसानों का हक डकारने से डरने भी लग जाएंगे।
ग्वार का भाव पिछले 10 वर्षों से
निचले स्तर पर बना हुआ है।
अडानी अंबानी जैसे चाहतों को मोदी जी फायदा पहुंचा रहे हैं और फिर किसानों की उपज का दोगुना भाव क्यों नहीं दिला सकते ? यही हाल प्रदेश कांग्रेस सरकार का है। 20 मार्च को विधानसभा में आपदा राहत मंत्री गोविंद राम मेघवाल ने सरकार की तरफ से पक्ष रखा। उन्होंने बताया 103लाख हेक्टेयर की तुलना में इस बार रबी की 109.55 लाख हेक्टेयर में बुवाई हुई। शीतलहर से जनवरी में 10 जिलों में 33न खराबा हुआ 19 जिलों में कोई खराब नहीं हुआ 5 और 6 मार्च को हुई ओलावृष्टि की गिरदावरी करवाई है। कोटा में 6 तहसील के 69 गांव में 8293 किसान प्रभावित हुए हैं। स्पीकर सीपी जोशी ने कहा, मंत्री यह बताएं कि क्या विशेष पैकेज या सहायता दी जा सकती है। मंत्री बोले, यह
सीएम से वार्ता व कैबिनेट की
बैठक कर सकती है। विधायकों ने
इसबगोल और जीरे के अलावा
अरंडी, गेहूं को सर्वाधिक नुकसान
बताया। मंत्री के जवाब से असंतोष जताकर भाजपा विधायकों ने नारे लगाते हैं वाक आउट कर दिया। इस पूरी बात को समझने के बाद यह है लग रहा है की हमारे द्वारा चुने गए पक्ष व विपक्ष के सभी विधायक अपनी जिंदगी ऐसो आराम से जीने के लिए हमें जाति व धर्म के नाम पर लड़ाते हैं और हमारी अक्ल निकालकर चतुर लोगों में से एक विधानसभा इस बार पहुंच जाता है और दूसरा अगली बार अगली बार सरसों की फसल में 80 से 90 नुकसान हुआ है और आपदा मंत्री उसे 33 बता रहे हैं। अचंभे की बात तो यह है की पक्ष व विपक्ष का एक भी विधायक इस बात का विरोध नहीं करता इसका सीधा सा अर्थ है सभी मिले हुए हैं। आमजन को पार्टियों में बांट कर सत्ता की चौखट तक पहुंचना ही इनका मकसद है। इतना बड़ा नुकसान किसानों का हुआ है और अशोक गहलोत सरकार ने विशेष पैकेज के नाम पर किसानों के खाते में फूटी कौड़ी भी नहीं डाली। उल्टा प्रशासन को कम नुकसान दिखाने का आदेश देकर बीमा कंपनियों द्वारा मिलने वाले क्लेम पर भी छुरी चला डाली। कांग्रेस एवं भाजपा के लोग सिर्फ सत्ता का स्वाद लेने के लिए एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करते रहते हैं, किसानों, गरीबों और मजदूरों के दुख दर्द में से इनका दूर दूर तक का वास्ता भी नहीं है। नोहर विधायक अमित चाचाण, सरदारशहर विधायक अनिल शर्मा, तारानगर विधायक नरेंद्र बुडानिया, चूरू विधायक राजेंद्र राठौड़, रतनगढ़ विधायक अभिनेश महर्षी, और सुजानगढ़ विधायक मनोज मेघवाल ही नहीं पूरे राजस्थान के दो चार विधायकों के अलावा किसी ने सरसों की फसल में शीतलहर से हुए 80 से 90 फीसदी नुकसान का मुद्दा विधानसभा में क्यों नहीं उठाया? सभी नेता किसानों, मजदूरों व गरीबों को भोला भाला समझते हैं। नेताओं का मानना है कि जैसे तैसे करके इनको चुनाव के समय राजी कर लेंगे। लेकिन इस बार किसानों, मजदूरों व गरीबों ने भी संकल्प ले रखा है कि कांग्रेस या भाजपा दोनों ही पार्टियों को सबक सिखाने का समय आ गया है।